गणेश चतुर्थी 2018 : किसी औषधि से कम नहीं है गणेश जी को चढ़ाई जाने वाली दूर्वा
लाइव हिन्दुस्तान ,नई दिल्ली
- Last updated: Sun, 16 Sep 2018 08:39 AM IST
![गणेश दूर्वा गणेश दूर्वा](https://images1.livehindustan.com/uploadimage/library/2018/09/12/16_9/16_9_1/_1536763930.jpg)
गणेश चतुर्थी के लिए हर ओर तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। गणपति उत्सव में पूरा देश रंगा हुआ नजर आता है। गणेश पूजा में एक खास तरह की घास का विशेष महत्व होता है, जिसे दूर्वा कहते हैं। यह गणेश पूजा में जरूर चढ़ाई जाती है। बिना दूर्वा के गणेश पूजन को सम्पन्न नहीं माना जाता है। सभी देवी देवताओं में एक मात्र गणेश ही ऐसे देव हैं जिनको यह विशेष किस्म की घास चढ़ाई जाती है।
दूर्वा अर्पित करने का है खास तरीका
इक्कीस दूर्वा को इक्कठी कर एक गांठ बनाई जाती है फिर इसे गणेश जी के मस्तक पर चढ़ाई जाती है। दूब को संस्कृत में दूर्वा, अमृता, अनंता, गौरी, महौषधि, शतपर्वा, भार्गवी नामों से जानते हैं।
इक्कीस दूर्वा को इक्कठी कर एक गांठ बनाई जाती है फिर इसे गणेश जी के मस्तक पर चढ़ाई जाती है। दूब को संस्कृत में दूर्वा, अमृता, अनंता, गौरी, महौषधि, शतपर्वा, भार्गवी नामों से जानते हैं।
आयुर्वेद में औषधि के रूप में है वर्णन
गणेश जी को चढ़ाने के अलावा आयुर्वेद में दूब का उल्लेख औषधि की तरह किया गया है। जो बड़े से बड़े रोगों की जड़ को काटती है। आइए गणेश चतुर्थी के मौके पर जानते हैं इस पवित्र घास के औषधीय गुण और इससे होने वाले फायदों के बारे में।
गणेश जी को चढ़ाने के अलावा आयुर्वेद में दूब का उल्लेख औषधि की तरह किया गया है। जो बड़े से बड़े रोगों की जड़ को काटती है। आइए गणेश चतुर्थी के मौके पर जानते हैं इस पवित्र घास के औषधीय गुण और इससे होने वाले फायदों के बारे में।
कहानी
प्राचीन काल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था। अनलासुर ऋषि-मुनियों और आम लोगों को जिंदा निगल जाता था। दैत्य से त्रस्त होकर देवराज इंद्र सहित सभी देवी-देवता और प्रमुख ऋषि-मुनि शिवजी से प्रार्थना करने पहुंचे। शिवजी ने सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों की प्रार्थना सुनकर कहा कि अनलासुर का अंत केवल श्रीगणेश ही कर सकते हैं। जब श्रीगणेश ने अनलासुर को निगला तो उनके पेट में बहुत जलन होने लगी। तब कश्यप ऋषि ने 21 दूर्वा की गांठ बनाकर श्रीगणेश को खाने को दी। जब गणेशजी ने दूर्वा ग्रहण की तो उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई।
प्राचीन काल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था। अनलासुर ऋषि-मुनियों और आम लोगों को जिंदा निगल जाता था। दैत्य से त्रस्त होकर देवराज इंद्र सहित सभी देवी-देवता और प्रमुख ऋषि-मुनि शिवजी से प्रार्थना करने पहुंचे। शिवजी ने सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों की प्रार्थना सुनकर कहा कि अनलासुर का अंत केवल श्रीगणेश ही कर सकते हैं। जब श्रीगणेश ने अनलासुर को निगला तो उनके पेट में बहुत जलन होने लगी। तब कश्यप ऋषि ने 21 दूर्वा की गांठ बनाकर श्रीगणेश को खाने को दी। जब गणेशजी ने दूर्वा ग्रहण की तो उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई।
किसी औषधि से कम नहीं है दुर्वा
इस कथा से मालूम चलता है कि पेट की जलन, तथा पेट के रोगों के लिए दूर्वा औषधि का कार्य करती है। मानसिक शांति के लिए यह बहुत लाभप्रद है। यह विभिन्न बीमारियों में एंटीबायोटिक का काम करती है, उसको देखने और छूने से मानसिक शांति मिलती है और जलन शांत होती है। वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि कैंसर रोगियों के लिए भी यह लाभप्रद है।
इस कथा से मालूम चलता है कि पेट की जलन, तथा पेट के रोगों के लिए दूर्वा औषधि का कार्य करती है। मानसिक शांति के लिए यह बहुत लाभप्रद है। यह विभिन्न बीमारियों में एंटीबायोटिक का काम करती है, उसको देखने और छूने से मानसिक शांति मिलती है और जलन शांत होती है। वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि कैंसर रोगियों के लिए भी यह लाभप्रद है।
मधुमेह को करे दूर
कई शोधों में ये बात सामने आई है कि दूब में ग्लाइसेमिक क्षमता अच्छी होती है। इस घास के अर्क से मधुमेह रोगियों पर महत्वपूर्ण हाइपोग्लिसीमिक प्रभाव पड़ता है। इसका सेवन डायबिटिक मरीजों के लिए लाभदायक है।
कई शोधों में ये बात सामने आई है कि दूब में ग्लाइसेमिक क्षमता अच्छी होती है। इस घास के अर्क से मधुमेह रोगियों पर महत्वपूर्ण हाइपोग्लिसीमिक प्रभाव पड़ता है। इसका सेवन डायबिटिक मरीजों के लिए लाभदायक है।
एनीमिया दूर करे
दूब के रस को हरा रक्त कहा जाता है, क्योंकि इसे पीने से एनीमिया की समस्या को ठीक किया जा सकता है। दूब ब्लड को शुद्ध करती है एवं लाल रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने में मदद करती है जिसके कारण हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है।
दूब के रस को हरा रक्त कहा जाता है, क्योंकि इसे पीने से एनीमिया की समस्या को ठीक किया जा सकता है। दूब ब्लड को शुद्ध करती है एवं लाल रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने में मदद करती है जिसके कारण हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है।
सुंदरता रखे बरकरार
दूब में एंटी इंफ्लमेटरी और एंटीसेप्टिक एजेंट होने के नाते खुजली,स्किन रैशेज और एग्जिमा जैसी त्वचा की समस्याओं से निजात मिलता है। हल्दी पाउडर के साथ इस घास का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाए। इससे चेहरे पर बने फोड़े फुंसी का भी खात्मा होता है।
दूब में एंटी इंफ्लमेटरी और एंटीसेप्टिक एजेंट होने के नाते खुजली,स्किन रैशेज और एग्जिमा जैसी त्वचा की समस्याओं से निजात मिलता है। हल्दी पाउडर के साथ इस घास का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाए। इससे चेहरे पर बने फोड़े फुंसी का भी खात्मा होता है।
पित्त और कब्ज करे दूर
आयुर्वेद के अनुसार चमत्कारी वनस्पति दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, फाइबर, पोटाशियम पर्याप्त मात्रा में होते हैं जोकि विभिन्न प्रकार के पित्त एवं कब्ज विकारों को दूर करने में राम बाण का काम करते हैं। यह पेट के रोगों, यौन रोगों, लीवर रोगों के लिए असरदार मानी जाती है।
आयुर्वेद के अनुसार चमत्कारी वनस्पति दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, फाइबर, पोटाशियम पर्याप्त मात्रा में होते हैं जोकि विभिन्न प्रकार के पित्त एवं कब्ज विकारों को दूर करने में राम बाण का काम करते हैं। यह पेट के रोगों, यौन रोगों, लीवर रोगों के लिए असरदार मानी जाती है।
सिर दर्द होता है दूर
आयुर्वेद के विद्वानों के अनुसार दूब और चूने को बराबर मात्रा में पानी के साथ पीसकर माथे पर लेप करने से सिरदर्द में तुरंत लाभ होता है। वहीं अगर दूब को पीसकर पलकों पर लगाया जाए तो इससे आंखो को फायदा पहुंचता है और नेत्र सम्बंधी रोग दूर होते हैं ।
आयुर्वेद के विद्वानों के अनुसार दूब और चूने को बराबर मात्रा में पानी के साथ पीसकर माथे पर लेप करने से सिरदर्द में तुरंत लाभ होता है। वहीं अगर दूब को पीसकर पलकों पर लगाया जाए तो इससे आंखो को फायदा पहुंचता है और नेत्र सम्बंधी रोग दूर होते हैं ।
मुंह के छालों का खात्मा
दूब के काढ़े से कुल्ले करने से मुंह के छाले मिट जाते हैं। इसके अलावा यह आंखों के लिए भी अच्छा होता हैं क्योंकि इस पर नंगे पैर चलने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
दूब के काढ़े से कुल्ले करने से मुंह के छाले मिट जाते हैं। इसके अलावा यह आंखों के लिए भी अच्छा होता हैं क्योंकि इस पर नंगे पैर चलने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
नकसीर की समस्या से निजात
नकसीर की परेशानी होने पर अनार के फूल के रस को दूब के रस के साथ के साथ मिलाकर उसकी 1 से 2 बूंद नाक में डालने से नकसीर में काफी आराम मिलता है और नाक से खून आना तुंरत बंद हो जाता है।
नकसीर की परेशानी होने पर अनार के फूल के रस को दूब के रस के साथ के साथ मिलाकर उसकी 1 से 2 बूंद नाक में डालने से नकसीर में काफी आराम मिलता है और नाक से खून आना तुंरत बंद हो जाता है।
अतिसार होता है दूर
आयुर्वेद के जानकारों के अनुसार दूब का ताजा रस पुराने अतिसार और पतले अतिसारों में बेहद उपयोगी होता है। इसके लिए दूब को सोंठ और सौंफ के साथ उबालकर पीने से आराम मिलता है।
आयुर्वेद के जानकारों के अनुसार दूब का ताजा रस पुराने अतिसार और पतले अतिसारों में बेहद उपयोगी होता है। इसके लिए दूब को सोंठ और सौंफ के साथ उबालकर पीने से आराम मिलता है।
मूत्र संबंधी समस्या होती है दूर
दूब के रस को मिश्री के साथ मिलाकर पीने से पेशाब से खून आना बंद हो जाता है। साथ ही 1 से 2 ग्राम दूर्वा को पीस कर दूध में मिलाकर पीने से पेशाब में जलन, पेशाब करते हुए दर्द होना और यूरिन इंफेक्शन से निजात मिलता है।
दूब के रस को मिश्री के साथ मिलाकर पीने से पेशाब से खून आना बंद हो जाता है। साथ ही 1 से 2 ग्राम दूर्वा को पीस कर दूध में मिलाकर पीने से पेशाब में जलन, पेशाब करते हुए दर्द होना और यूरिन इंफेक्शन से निजात मिलता है।
गर्भपात में रोकता है रक्त स्त्राव
दूब का प्रयोग रक्तप्रदर और गर्भपात में भी उपयोगी है। दूब के रस में सफेद चंदन और मिश्री मिलाकर पीने से रक्तप्रदर में शीघ्र लाभ मिलता है। इसके साथ ही प्रदर रोग, रक्तस्त्राव और गर्भपात की वजह से रक्तस्त्राव में आराम मिलता है और रक्त बहना तुरंत रूक जाता है।
दूब का प्रयोग रक्तप्रदर और गर्भपात में भी उपयोगी है। दूब के रस में सफेद चंदन और मिश्री मिलाकर पीने से रक्तप्रदर में शीघ्र लाभ मिलता है। इसके साथ ही प्रदर रोग, रक्तस्त्राव और गर्भपात की वजह से रक्तस्त्राव में आराम मिलता है और रक्त बहना तुरंत रूक जाता है।
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