किस देश के पास है हैकर्स की सबसे बड़ी सेना?
![हैकर्स](https://ichef.bbci.co.uk/news/660/cpsprodpb/16A12/production/_103309629_tv039493013.jpg)
इस साल अगस्त महीने में हर साल की तरह, अमरीका के लास वेगस में एक ख़ास मेला लगा. ये मेला था, हैकर्स का. जिसमें साइबर एक्सपर्ट से लेकर बच्चों तक, हर उम्र के लोग हैकिंग का हुनर दिखा रहे थे.
लास वेगस में हर साल हैकर्स जमा होते हैं. इनके हुनर की निगरानी करके अमरीका के साइबर एक्सपर्ट ये समझते हैं कि हैकर्स का दिमाग़ कैसे काम करता है. वो कैसे बड़ा ऑपरेशन चलाते हैं.
जिस वक़्त हैकर्स का ये मेला लास वेगस में लगा था, ठीक उसी वक़्त हैकर्स ने एक भारतीय बैंक पर साइबर अटैक करके क़रीब 3 करोड़ डॉलर की रक़म उड़ा ली. दुनिया भर में हर वक़्त सरकारी वेबसाइट से लेकर बड़ी निजी कंपनियों और आम लोगों पर साइबर अटैक होते रहते हैं.
आख़िर कैसे चलता है हैकिंग का ये साम्राज्य?
बीबीसी की रेडियो सिरीज़ द इन्क्वायरी में हेलेना मेरीमैन ने इस बार इसी सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की. उन्होंने साइबर एक्सपर्ट्स की मदद से हैकर्स की ख़तरनाक और रहस्यमयी दुनिया में झांकने की कोशिश की.
1990 के दशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस में बहुत से एक्सपर्ट अचानक बेरोज़गार हो गए.
ये इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर थे और गणितज्ञ थे. रोज़ी कमाने के लिए इन्होंने इंटरनेट की दुनिया खंगालनी शुरू की. उस वक़्त साइबर सिक्योरिटी को लेकर बहुत ज़्यादा संवेदनशीलता नहीं थी और न जानकारी थी.
इन रूसी एक्सपर्ट ने हैकिंग के साम्राज्य की बुनियाद रखी. इन रूसी हैकरों ने बैंकों, वित्तीय संस्थानों, दूसरे देशों की सरकारी वेबसाइट को निशाना बनाना शुरू किया. अपनी कामयाबी के क़िस्से ये अख़बारों और पत्रिकाओं को बताते थे.
रूस के खोजी पत्रकार आंद्रेई शोश्निकॉफ़ बताते हैं कि उस दौर में हैकर्स ख़ुद को हीरो समझते थे. उस दौर में रूस में हैकर्स नाम की एक पत्रिका भी छपती थी.
आंद्रेई बताते हैं कि उस दौर के हर बड़े रूसी हैकर का ताल्लुक़ हैकर पत्रिका से था. रूस की ख़ुफ़िया एजेंसी एफ़एसबी को इन हैकर्स के बारे में मालूम था.
मगर ताज्जुब की बात ये थी कि रूस की सरकार को इन हैकर्स की करतूतों से कोई नाराज़गी नहीं थी बल्कि वो तो इन हैकर्स का फ़ायदा उठाना चाहते थे.
रूसी पत्रकार आंद्रेई शॉश्निकॉफ़ बताते हैं कि एफ़एसबी के चीफ़ निजी तौर पर कई रूसी हैकर्स को जानते थे.
2007 में रूसी हैकर्स ने पड़ोसी देश एस्टोनिया पर बड़ा साइबर हमला किया. इन हैकर्स ने एस्टोनिया की सैकड़ों वेबसाइट को हैक कर लिया. ऐसा उन्होंने रूस की सरकार के इशारे पर किया था.
अगले ही साल रूसी हैकर्स ने एक और पड़ोसी देश जॉर्जिया की तमाम सरकारी वेबसाइट को साइबर अटैक से तबाह कर दिया.
![फ़ैंसी बियर](https://ichef.bbci.co.uk/news/624/cpsprodpb/9219/production/_103310473_tv048777963.jpg)
रूस के सरकारी हैकर्स
रूसी पत्रकार आंद्रेई बताते हैं कि 2008 में जॉर्जिया पर हुआ साइबर हमला रूस के सरकारी हैकर्स ने किया था. ये रूस की ख़ुफ़िया एजेंसी के कर्मचारी थे.
रूस की सरकार को लगा कि वो फ्रीलांस हैकर्स पर बहुत भरोसा नहीं कर सकते. इससे बेहतर तो ये होगा कि वो अपनी हैकर आर्मी तैयार करें. रूसी हैकर्स की इसी साइबर सेना ने जॉर्जिया पर 2008 में हमला किया था.
आज की तारीख़ में रूस के पास सबसे ताक़तवर साइबर सेना है.
रूसी हैकर्स पर आरोप है कि उन्होंने अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में दख़लंदाज़ी की. उन्होंने व्हाइट हाउस पर साइबर हमला किया. नैटो और पश्चिमी देशों के मीडिया नेटवर्क भी रूसी हैकर्स के निशाने पर रहे हैं.
रूस से हुए साइबर हमले में एक ख़ास ग्रुप का नाम कई बार आया है. इसका नाम है-फ़ैंसी बियर. माना जाता है कि हैकर्स के इस ग्रुप को रूस की मिलिट्री इंटेलिजेंस चलाती है. हैकरों के इसी ग्रुप पर आरोप है कि इसने पिछले अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में दख़लंदाज़ी की थी.
रूसी पत्रकार आंद्रेई शोश्निकॉफ़ कहते हैं कि इन साइबर हमलों के ज़रिए रूस दुनिया को ये बताना चाहता है कि वो साइबर साम्राज्य का बादशाह है.
90 के दशक में हॉलीवुड फ़िल्म मैट्रिक्स से प्रभावित होकर जिन रूसी साइबर इंजीनियरों ने हैकिंग के साम्राज्य की बुनियाद रखी थी, वो आज ख़ूब फल-फूल रहा है. आज बहुत से हैकर रूस की सरकार के लिए काम करते हैं.
मगर, हैकिंग के इस खेल में रूस अकेला नहीं है.
![रेवॉल्युशनरी गार्ड](https://ichef.bbci.co.uk/news/624/cpsprodpb/E039/production/_103310475_tv047837586.jpg)
ईरान के पास भी है हैकर्स की सेना
ईरान भी हैकिंग की दुनिया का एक बड़ा खिलाड़ी है. 1990 के दशक में इंटरनेट के आने के साथ ही ईरान ने अपने यहां के लोगों को साइबर हमलों के लिए तैयार करना शुरू कर दिया था.
ईरान जैसे देशों में सोशल मीडिया, सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का बड़ा मंच होते हैं. सरकार इनकी निगरानी करती है. ईरान में हैकर्स का इस्तेमाल वहां की सरकार अपने ख़िलाफ़ बोलने वालों का मुंह बंद करने के लिए करती है.
2009 में जब ईरान में सरकार विरोधी प्रदर्शन तेज़ हो रहे थे. तब ईरान के सरकारी हैकर्स ने तमाम सोशल मीडिया अकाउंट हैक करके ये पता लगाया कि आख़िर इन आंदोलनों के पीछे कौन है. उन लोगों की शिनाख़्त होने के बाद उन्हें डराया-धमकाया और जेल में डाल दिया गया.
यानी साइबर दुनिया की ताक़त से ईरान की सरकार ने अपने ख़िलाफ़ तेज़ हो रहे बग़ावती सुर को शांत कर दिया था.
ईरान के पास रूस जैसी ताक़त वाली साइबर सेना तो नहीं है, मगर ये ट्विटर जैसे सोशल मीडिया को परेशान करने का माद्दा ज़रूर रखती है. जानकार बताते हैं कि ईरान की साइबर सेना को वहां के मशहूर रिवोल्यूशनरी गार्ड्स चलाते हैं.
ईरान में दुनिया के एक से एक क़ाबिल इंजीनियर और वैज्ञानिक तैयार होते हैं. दिक़्क़त ये है कि इनमें से ज़्यादातर पढ़ाई पूरी करने के बाद अमरीका या दूसरे पश्चिमी देशों का रुख़ करते हैं. तो, ईरान की साइबर सेना को बचे-खुचे लोगों से ही काम चलाना पड़ता है.
अमरीकी थिंक टैंक कार्नेगी एंडोमेंट के लिए काम करने वाले करीम कहते हैं कि ईरान तीसरे दर्जे की साइबर पावर है. अमरीका, रूस, चीन और इज़राइल, साइबर ताक़त के मामले में पहले पायदान पर आते हैं. यूरोपीय देशों की साइबर सेनाएं दूसरे नंबर पर आती हैं.
ईरान अक्सर साइबर हमलों के निशाने पर रहता है. ख़ास तौर से अमरीका और इसराइल से. 2012 में ईरान के तेल उद्योग पर हुए साइबर हमलों में उसके सिस्टम की हार्ड ड्राइव से डेटा उड़ा दिए गए थे. ईरान पर इस साइबर हमले के पीछे अमरीका या इसराइल का हाथ होने की आशंका थी.
ईरान ने इसी हमले से सबक़ लेते हुए तीन महीने बाद अपने दुश्मन सऊदी अरब पर बड़ा साइबर हमला किया. इस हमले में ईरान के हैकर्स ने सऊदी अरब के तीस हज़ार कंप्यूटरों के डेटा उड़ा दिए थे.
आज हैकर्स ने अपने साम्राज्य को पूरी दुनिया में फैला लिया है. कमोबेश हर देश में हैकर मौजूद हैं. कहीं वो सरकार के लिए काम करते हैं, तो कहीं सरकार के ख़िलाफ़.
![किम जॉन्ग उन](https://ichef.bbci.co.uk/news/624/cpsprodpb/12E59/production/_103310477_tv049070327.jpg)
जहां साइबर हैकिंग पूरी तरह सरकारी
मगर, एक देश ऐसा है, जहां की साइबर हैकिंग सेना पूरी तरह से सरकारी है. इस देश का नाम है उत्तर कोरिया.
उत्तर कोरिया में हैकर्स की सेना को चलाती है वहां की ख़ुफ़िया एजेंसी आरजीबी. उत्तर कोरिया में 13-14 साल की उम्र से ही बच्चों को हैकिंग के लिए ट्रेनिंग दी जाने लगती है. स्कूलों से ही प्रतिभाशाली बच्चों को छांटकर हैकिंग की ख़ुफ़िया सेना में दाख़िल कर दिया जाता है.
गणित और इंजीनियरिंग में तेज़ छात्रों को सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की ट्रेनिंग दी जाती है. फिर या तो वो हैकर बनते हैं या सॉफ्टवेयर इंजीनियर. संसाधनों की कमी की वजह से उत्तर कोरिया में बच्चे पहले काग़ज़ के की-बोर्ड पर अभ्यास करते हैं. जो तेज़-तर्रार होते हैं, बाद में उन्हें कंप्यूटर मुहैया कराया जाता है.
उत्तर कोरिया अपने यहां के बहुत से छात्रों को चीन या दूसरे एशियाई देशों में आईटी की पढ़ाई करने के लिए भेजता है, ताकि वो साइबर दुनिया को अच्छे से समझ सकें और देश के काम आ सकें.
इनमें से कई छात्र पढ़ाई पूरी करके चीन या दूसरे देशों में ही रुक जाते हैं और वहीं से अपने देश के लिए हैकिंग का काम करते हैं. उनका मक़सद कमाई करके अपने देश को पैसे भेजना होता है.
ये उत्तर कोरियाई हैकर्स 80 हज़ार से एक लाख डॉलर लेकर फ्रीलांस हैकिंग करते हैं, ताकि अपने देश के लिए पैसे कमा सकें.
जानकार मानते हैं कि क़रीब 2-3 हज़ार उत्तर कोरिया हैकर फ्रीलांस का काम करते हैं, इनके निशाने पर क्रेडिट कार्ड, बैंक के खाते हुआ करते हैं, ताकि आसानी से कमाई हो सके.
उत्तर कोरिया के हैकर्स ने दुनिया के कई बैकों पर बड़े साइबर हमले करके करोड़ों की रक़म उड़ाई है. इनके निशाने पर लैटिन अमरीकी देश इक्वाडोर से लेकर पड़ोस के देश तक रहे हैं.
अब जब साइबर क्राइम बढ़ रहे हैं, तो ज़ाहिर है तमाम देशों ने साइबर सुरक्षा के लिए पुलिस बल भी तैयार किए हैं.
ऐसी ही साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट हैं, माया होरोवित्ज़. माया साइबर हमले करने वाले हैकर्स को तलाशती और पकड़ती हैं. हैकिंग के केस सुलझाती हैं. वो साइबर सिक्योरिटी कंपनी चेक प्वाइंट के लिए काम करती हैं.
![क्रिप्टोकरेंसी](https://ichef.bbci.co.uk/news/624/cpsprodpb/17C79/production/_103310479_tv048677607.jpg)
अब क्रिप्टोकरेंसी निशाने पर
इसराइल की रहने वाली माया बताती हैं कि आमतौर पर आईटी प्रोफ़ेशनल्स ही साइबर हमलों के पीछे होते हैं. ये तीन या चार लोगों की टीम के तौर पर काम करते हैं. एक टारगेट की तलाश करता है, तो दूसरा सेंध लगाता है और तीसरा खातों से डेटा या पैसों की चोरी करता है.
माया बताती हैं कि कई बार हैकर्स 5 से 7 लोगों के ग्रुप में काम करते हैं, जो एक-दूसरे को कोड नेम से जानते हैं. किसी को दूसरे का असली नाम नहीं पता होता.
सवाल ये उठता है कि जब वो एक-दूसरे को जानते नहीं, तो फिर कैसे संपर्क करते हैं ?
माया बताती हैं कि हैकर्स अक्सर टेलीग्राम नाम के सोशल मैसेजिंग ऐप के ज़रिए बात करते हैं. ये एनक्रिप्टेड मैसेज सर्विस है, जो आतंकी संगठनों के बीच बहुत लोकप्रिय है.
साइबर अपराधी अक्सर अपने हुनर या कोड को बेचकर पैसे कमाते हैं. वो बैंक या किसी वित्तीय संस्थान के कर्मचारी से मेल करके हैकिंग कर सकते हैं, या फिर कुछ वक़्त के लिए अपना हैकिंग कोड किसी और को देकर पैसे कमा सकते हैं.
![हैकर्स](https://ichef.bbci.co.uk/news/624/cpsprodpb/47E1/production/_103310481_tv016814621.jpg)
आज की तारीख़ में साइबर अपराध या हैकिंग एक बड़ा कारोबार बन गया है.
साइबर दुनिया के अपराधी इन दिनों वर्चुअल करेंसी जैसे बिटकॉइन को निशाना बना रहे हैं. वो दूसरों के खातों की वर्चुअल करेंसी को हैकिंग के ज़रिए अपने खातों में ट्रांसफ़र करके पैसे कमा रहे हैं. या यूं कहें कि दूसरों के वर्चुअल खातों में डाका डाल रहे हैं.
माया होरोवित्ज़ कहती हैं कि साइबर अपराधी हमारे कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन पर हमले करके हमारी प्रॉसेसिंग की ताक़त को छीन लेते हैं. कई बार हमें इसका पता भी नहीं चलता. बस हमारे लैपटॉप या फ़ोन ज़्यादा गर्म होने लगते हैं. बिजली का बिल बढ़ जाता है.
माया इसकी मिसाल के तौर पर आइसलैंड नाम के एक छोटे से देश की मिसाल देती हैं. वहां के लोग अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए कम बिजली इस्तेमाल करते हैं. आइसलैंड में ज़्यादा बिजली ऑनलाइन डेटा प्रॉसेसिंग यानी क्रिप्टोमाइनिंग में ख़र्च हो रही है.
दिक़्क़त ये है कि बिजली एक सीमा तक ही उपलब्ध है, वहीं वर्चुअल दुनिया अपार है. तो, अगर आइसलैंड में इसी दर से क्रिप्टोमाइनिंग होती रही, तो उनकी बाक़ी ज़रूरतों के लिए एक दिन बिजली बचेगी ही नहीं.
हैकर्स के इन हमलों से उस्ताद देश भी परेशान हैं. जैसे कि उत्तरी कोरिया. उसने एलान किया है कि जल्द ही वो क्रिप्टोमाइनिंग की कांफ्रेंस आयोजित करेगा.
आज साइबर अपराधियों का साम्राज्य इतना फैल गया है कि ये धंधा अरबों-ख़रबों डॉलर का हो गया है. हैकर्स आज सरकारों के लिए भी काम कर रहे हैं और भाड़े पर भी. ये बैंकों और सरकारी वेबसाइटों से लेकर निजी कंप्यूटरों और मोबाइल तक को निशाना बना रहे हैं.
इन्हें कई देशों में सरकारें ट्रेनिंग दे रही हैं, ताकि दुश्मन देशों को निशाना बना सकें. तो, ईरान जैसे कई देश इन्हें भाड़े पर रखकर विरोध की आवाज़ दबा रहे हैं. साइबर अंडरवर्ल्ड आज ख़ूब फल-फूल रहा है.
( बीबीसी के रेडियो कार्यक्रम 'द इन्क्वायरी' का ये ऐपीसोड सुनने के लिए यहाँ क्लिककरें.)
![bbchindi.com](https://ichef.bbci.co.uk/news/624/cpsprodpb/1389F/production/_103213008_yahbhipadhen.png)
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