आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने की कांग्रेस की तारीफ़

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का कहना है कि इस्लाम और ईसाई धर्म के अनुयायियों में भी भारतीय संस्कारों का प्रचलन आज भी मिलता है.
संघ द्वारा दिल्ली में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला - 'भविष्य का भारत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण' में भागवत बोल रहे थे.
उन्होंने कहा, "मैं तो कहता हूँ कि भारत के बाहर से जो आये और आज उनके अनुयायी भारतीय लोग हैं. इस्लाम है, ईसाई हैं, वो अगर भारतीय हैं तो उनके घरों में उन्हीं संस्कारों का प्रचलन आज भी है. विभिन्न समुदायों को जोड़ने वाली 'ये मूल्य आधारित संस्कृति' ही है. "
'कांग्रेस का बड़ा योगदान'
भारत की आज़ादी के आंदोलन के बारे में मोहन भागवत ने कहा "हमारे देश के लोगों में राजनीतिक समझदारी कम है. सत्ता किसकी है इसका क्या महत्व है लोग कम जानते हैं. अपने देश के लोगों की राजनीतिक जागृति करनी चाहिए."
"और इसीलिए कांग्रेस के रूप में एक बड़ा आंदोलन देश में खड़ा हुआ और उसमें भी सर्वत्यागी महापुरुष जिनकी प्रेरणा आज भी हमारे जीवन में प्रेरणा का काम करती है, ऐसे लोग पैदा हुए."
"देश के सर्वसामान्य व्यक्ति को स्वतंत्रता के लिए रास्ते में खड़ा करने का काम उस धारा ने किया है. स्वतंत्रता प्राप्ति में एक बड़ा योगदान उस धारा का है."
उन्होंने रवीद्रनाथ टैगौर का ज़िक्र करते हुए कहा कि, "उनका एक स्वदेशी समाज नाम का बड़ा निबंध है. उसमें उन्होंने कहा है कि एकात्मता की ज़रूरत है. झगड़े होने से नहीं चलेगा."

मोहन भागवत के व्याख्यान से पहले संघ विचारक और दिल्ली विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफ़ेसर बजरंग लाल ने कहा कि ये कार्यक्रम इसलिए आयोजित किया गया ताकि लोग संघ के बारे में जानें.
उन्होंने यह भी कहा, "इस आयोजन के समय को लेकर किसी भी तरह के कयास ना लगाए जाएँ. इस तरह के कयास लगाए जा रहे हैं कि 2019 में होने वाले आम चुनावों से पहले इस तरह का आयोजन किया गया."
संघ ने इस कार्यक्रम में धर्मगुरुओं के अलावा, खिलाड़ियों, राजनयिकों और बॉलीवुड के कलाकारों के अलावा उद्योगपतियों और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को भी आमंत्रित किया था.

संघ के इस आमंत्रण के बाद व्याख्यान के पहले दिन बॉलीवुड की कई हस्तियां मौजूद थीं जिनमें प्रमुख रूप से नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, मधुर भंडारकर, हंसराज हंस, रवि किशन, मालिनी अवस्थी, अनु मालिक, अनु कपूर के अलावा अभिनेत्री मनीषा कोइराला भी शामिल हुईं.
'लोकतांत्रिक संगठन है संघ'
मोहन भागवत का कहना था, "विविधताओं से डरना नहीं बल्कि उन्हें स्वीकार करना चाहिए. चूँकि परंपरा में समन्वय एक मूल्य है जो मिलजुलकर रहना सिखाता है."
उन्होंने कहा, "डॉक्टर हेडगेवार हमेशा कहते थे कि अपनी दुर्व्यवस्था का इल्ज़ाम अंग्रेज़ों को और इस्लाम का जो आक्रमण हुआ था उसके लिए मुसलमानों को कब तक देते रहोगे. ये हुआ कैसे कि हज़ारों मील दूर से मुट्ठी भर लोग आये और सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश को उन्होंने कैसे जीत लिया? तुम्हारी ही कोई कमी है. उसे ठीक करो."
भागवत ने डॉक्टर हेडगेवार की चर्चा करते हुए ये भी कहा कि कभी-कभी वो पूछा करते थे कि देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है. उन्होंने कहा "मैं भी इस प्रश्न के उत्तर में उनका अनुकरण करता हूँ. वो कहते थे कि यहाँ की सबसे बड़ी समस्या यहां का हिंदू है. हमने जब अपने मूल्यों को भूलकर आचरण शुरू किया तो हमारा पतन हुआ."

क्या है संघ और क्या है संघ की योजना?
संघ की स्थापना के बारे में बताते हुए मोहन भागवत ने कहा, "डॉक्टर हेडगेवार ने कहा था कि संपूर्ण हिंदू समाज को हमें एकजुट करना है और हमें केवल यही एक काम करना है क्योंकि जो करना है उसके बाद अपने आप होगा. उस वातावरण में समाज का आचरण बदलेगा."
उन्होंने कहा, "संघ की योजना है कि प्रत्येक गली में प्रत्येक गांव में ऐसे अच्छे स्वयंसेवक खड़े करना जिनका चरित्र प्रशंसायोग्य हो, विश्वसनीय हो, शुद्ध हो, जो भेदभाव ना करे, सभी से प्रेम करे और और समाज को अपना मान कर काम करता हो."
"इसी योजना के साथ 1925 में संघ की स्थापना की गई थी. इसके सिवा संघ का और कोई उद्देश्य नहीं था."
संघ के बारे में बात करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि संघ को बाहर से देखने पर लगता होगा कि इसमें सिर्फ एक आदमी की चलती है जो सरसंघचालक है या उनकी जिन्हें बाहर कुछ लोग चीफ़ कहकर सम्बोधित करते हैं.
उन्होंने कहा, "संघ पूरी तरह से लोकतांत्रिक संगठन है जहां एक-एक स्वयंसेवक के विचारों को सुना जाता है और उन विचारों पर अमल किया जाता है."
कार्यक्रम के पहले दिन राजनयिकों और धर्मगुरुओं की शिरकत तो दिखी मगर राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व कम नज़र आया जबकि संघ की तरफ से 40 राजनीतिक दलों को न्योता भेजा गया था. कार्यक्रम में शामिल राजनेताओं में अमर सिंह और सुब्रमनियन स्वामी दिखे.
आयोजकों को लगता है कि कार्यक्रम के अगले दो दिनों में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि भी अच्छी संख्या में शामिल हो सकते हैं.
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