BBC EXCLUSIVE | मोदी सरकार ऊंची जातियों के ख़िलाफ़, अब तो ये प्रचार हो रहा है: रामविलास पासवान
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केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के अध्यक्ष रामविलास पासवान का दावा है कि नरेंद्र मोदी सरकार 2019 में वापसी करेगी.
उन्होंने बीबीसी को दिए ख़ास इंटरव्यू में कहा है कि तीन महीने पहले तक नरेंद्र मोदी सरकार की छवि दलित विरोधी सरकार के रूप में बन गई थी, लेकिन अब ये छवि पूरी तरह से बदल चुकी है.
देश भर में पिछले दिनों एससी-एसटी एक्ट में हुए बदलाव पर मचे घमासान से लेकर बिहार की राजनीति तक पर, क्या है रामविलास पासवान की राय, पढ़िए उनका पूरा इंटरव्यू:
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- एससी-एसटी एक्ट को लेकर पूरे देश में एक तरह से विवाद देखने को मिला है. पहले इसमें बदलाव के विरोध में दलितों ने भारत बंद किया. आप लोगों ने भी विरोधकिया था और हाल ही में सवर्णों के संगठनों ने भी भारत बंद किया. इस पूरे विवाद को आप किस रूप में देखते हैं?
इस कानून को 29 साल हो गए हैं. 1989 से ये क़ानून चलता आ रहा है. इस पर कभी कोई ऑब्जेक्शन नहीं आया. इस दौरान देश में आठ-आठ प्रधानमंत्री बदले. पहले वीपी सिंह, उनके बाद चंद्रशेखर, एच डी देवगौड़ा, आई के गुजराल, पी वी नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और अब नरेंद्र मोदी. कोई बदलाव नहीं हुआ.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च 2018 को एक फ़ैसला दे दिया जो इस क़ानून के मूल-भाव को बदलने वाला था. ए के गोयल ने फ़ैसला दिया कि एस-एसटी एक्ट के तहत दर्ज मुक़दमे में भी एंटीसिप्टरी बेल दिया जा सकता है.
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इस फ़ैसले को लेकर कोई राजनीतिक दल नहीं बल्कि जो नए-नए दलित संगठन आए हैं, वो सड़कों पर आ गए.
हालांकि सरकार ने रिव्यू पिटीशन दाख़िल कर दिया था. लेकिन 2 अप्रैल को भारत बंद में हिंसा हुई, जिसमें 12 लोगों की मौत हुई. 10 दलित मारे गए, सैकड़ों की गिरफ़्तारी हुई.
इस हिंसा के बाद हम लोगों ने सरकार पर दबाव बनाया. क्योंकि दलित संगठनों ने 9 अगस्त को फिर से बंद करने की बात कही थी.
लेकिन प्रधानमंत्री ने गृहमंत्री की अध्यक्षता में एक समिति बनाई, मैं भी उसमें शामिल था. उसमें ये तय हुआ कि कोर्ट का फ़ैसला नहीं आया तो हम लोग अध्यादेश लायेंगे. इसके बाद सरकार ने स्पेशल कैबिनेट की बैठक बुलाकर बिल को पास किया. इसके बाद जो ऑरिजनल एक्ट है, वो वैसा ही है. ना कॉमा जोड़ा गया है, ना ही घटाया गया है.
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- इस पूरे विवाद को राजनीतिक चश्मे की नज़र से भी देखा जा रहा है. कुछ लोगों का कहना है कि ये पूरा विवाद भाजपा की ओर से ही खड़ा किया गया था.
बीजेपी क्यों विवाद खड़ा करेगी. विपक्ष ने दोनों गुटों को उकसाने का काम किया है.
दो अप्रैल को दलितों के बंद में कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के लोगों ने उकसाने का काम किया. इनके लोग भी बंद हुए हैं.
जबकि यही मायावती हैं जिन्होंने 20 मई 2007 को अपनी सरकार में प्रावधान बनाया था कि एससी-एसटी एक्ट का दुरूपयोग होता है. इसलिए उच्च अधिकारी जब तक सत्यापन नहीं कर लें, तब तक एफ़आईआर दर्ज नहीं होनी चाहिए. तो दोहरी राजनीति ये है.
एक ओर दलित बच्चों को उकसाओ और दूसरी ओर सवर्णों को उकसाओ. हम तो हमेशा से कहते रहे हैं कि आर्थिक तौर पर पिछड़े सवर्णों के लिए भी 15 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था हो.
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- पासवान जी, आप दलितों के कद्दावर नेता हैं. लेकिन आप जिस सरकार में मंत्री हैं, उसकी छवि दलित-अल्पसंख्यक विरोधी सरकार की बन गई है.
ये छवि छह महीने पहले थी. तीन महीने पहले तक थी.
हमने तब भी कहा था कि इस छवि को बदलना होगा. इस छवि को सुधारना हमारा काम है.
आप ये देखिए कि इस सरकार ने बाबा साहेब से जुड़ी चार जगहों पर स्मारक बनाये हैं. लंदन में जहाँ वे पढ़ते थे वो मकान ख़रीदा है. आंबेडकर फॉउंडेशन बनाया है.
सारी नीतियाँ ग़रीबों के लिए हैं. ऐसे में वो शख़्स दलित विरोधी कैसे हो सकता है.
विरोधियों ने आरएसएस की आड़ में लगातार कोशिश यही की है कि वे नरेंद्र मोदी को दलित विरोधी ठहरा सकें.
लेकिन आज तो ये स्थिति है कि लोग कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी ऊंची जाति के ख़िलाफ़ में हैं. ये सरकार ऊंची जातियों के ख़िलाफ़ है. अब तो ये प्रचार हो रहा है.
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- लेकिन रामविलास जी, इस सरकार के समय में देश भर में दलितों और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के मामले भी बढ़े हैं?
हम नहीं मानते हैं. अत्याचार के आंकड़े पहले से भी रहे हैं. अगर अत्याचार बढ़े हैं तो आप एससी-एसटी एक्ट को रोकते क्यों हो. इस एक्ट को रोकने से ये अत्याचार और बढ़ेगा. हमारा यही मानना है.
हालांकि आप ये भी देखिए कि 2 अप्रैल को हुए भारत बंद में कोई रामविलास या मायावती जैसे नेता सड़क पर नहीं थे.
दलित युवा ख़ुद से सड़कों पर थे क्योंकि ये युवा चिराग पासवान की पीढ़ी के हैं, जो रामविलास की तरह अत्याचार सह नहीं सकते, ये टूट सकते हैं लेकिन झुकने को तैयार नहीं हैं.
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- दलितों की पीढ़ी बदल रही है लेकिन आपकी सरकार के ही सूचना प्रसारण मंत्रालय ने एक गाइडलाइंस जारी किया जिसमें दलित शब्द की जगह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति इस्तेमाल करने को कहा जा रहा है?
एक शब्द को लेकर आप ये कहिएगा कि सरकार दलित विरोधी है.
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- लेकिन ये आपत्ति क्यों है?
आपत्ति है, हमको भी थी. बाबा साहेब आंबडकर ने जब संविधान बनाया तो उसमें उन्होंने लिखा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति. तभी से इन लोगों को दलित कहा जाने लगा. दलित का मतलब शिड्यूल कास्ट नहीं होता है.
दलित तो कोई भी हो सकता है, ऊंचा जाति का भी हो सकता है, जो पीड़ित हो.
दलित जब आप लिखेंगे तो जाति नहीं लिख सकते हैं. लेकिन संविधान में आप देखिएगा कि सबकी जाति लिखी होती है. सरकारी योजनाओं में भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति लिखी जाती है.
बिहार में दलित शब्द से ही महादलित निकला. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति से ये संभव नहीं था.
तो मेरा यही कहना है कि मामले को तूल देने के बजाए जो सरकारी फ़ाइलों में चलता है कि वहाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति रहने दें और आम बोल चाल की भाषा में दलित को चलने दें.
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- पासवान जी, आपकी एक पहचान राजनीति के मौसम वैज्ञानिक की भी है. हमलोग चुनाव से पहले ये बातचीत कर रहे हैं तो 2019 में आप और आपकी पार्टी कहाँ होंगी?
हम जहाँ जहाँ गए, वहां कोई समझौता नहीं किए. चाहे वीपी सिंह के साथ में थे, चाहे अटल जी के साथ थे.
अटल जी के समय संविधान में तीन तीन संशोधन हुआ था, प्रमोशन में आरक्षण को लेकर. ऐसा भी नहीं हुआ है कि कोई सरकार बनी है तब हम वहां गए हैं.
मोदी जी की सरकार को मैंने तीन साल पहले कहा है कि पीएम पद की वैकेंसी है ही नहीं. मैंने ये भी कहा है कि विपक्ष को 2024 की तैयारी करनी चाहिए.
ये बात मैं आज भी कह रहा हूं. जिस पार्टी के पास विपक्ष के नेता का पद नहीं है, किसी को कोई नेता मानने को तैयार ही नहीं है, वो क्या फ़ाइट करेंगे.
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- आप जिस सरकार की वापसी की बात कर रहे हैं उसके कुछ नेता संविधान बदलने की बात कहते रहे हैं, आप संविधान में विश्वास करने वाले नेता रहे हैं तो ये सवाल भी बनता है कि आप कब तक उनके साथ रहेंगे. एक सवाल ये भी कि बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 50 साल तक शासन करने की बात कही है, जिस तरह की आपकी राजनीति रही है, ऐसे में इन बयानों से आप असहज तो होते होंगे?
संविधान और ख़ासकर आरक्षण की बात पर मैं असहज होता हूं. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ़ कहा है कि उनकी लाश पर ही आरक्षण बदल सकता है.
सात जन्म में ये बदलने वाला नहीं है. बाबा साहब का दिया संविधान है जो दिन प्रतिदिन मज़बूत बनता जा रहा है, जहाँ तक 50 साल तक शासन करने की बात है तो वह तो जनता को तय करना है. इसमें हमारे हाथ में कुछ है नहीं.
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- पासवान जी, आप 1969 में विधायक बन गए थे, तो आपने इंदिरा जी को भी प्रधानमंत्री के तौर पर राजनीति में देखा है और तब से लेकर अब तक कई प्रधानमंत्रियों के साथ काम भी किया है, ऐसे में नरेंद्र मोदी जी की कोई ख़ास बात बतानी हो तो क्या बताएंगे?
मैंने छह-छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है, जिनके साथ काम करता हूँ उनकी शिकायत मैं नहीं करता. और वैसे भी इन प्रधानमंत्रियों के साथ अपने अनुभव पर मैं अंत में किताब लिखूंगा.
जहाँ तक नरेंद्र मोदी की बात है तो मैं केवल इतना कहूंगा कि इनको काम के अलावा कुछ और सुझता नहीं है. वे हर वक्त काम करने की बात दोहराते रहते हैं. ये यूनिक चीज़ है.
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- आपसे बातचीत हो रही हो और उसमें बिहार की बात नहीं हो तो इंटरव्यू पूरा नहीं होगा, बिहार में सीटों का बंटवारा कैसे होगा.
मीडिया में जो कयास लगाए जा रहे हैं, उसमें कुछ भी सच नहीं है. सब अंदाजा लगा रहे हैं. हमारी बातचीत ही नहीं हुई है.
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह नीतीश कुमार से मिले होंगे, हमसे भी मिले हैं, लेकिन इन मुलाकातों में सीटों के बंटवारे पर कोई बात नहीं हुई है.
जब हमलोग बैठेंगे तो वो हो जाएगा, उसमें कोई समस्या नहीं है.
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- आख़िर में एक सवाल, आप उपभोक्ता मामलों के मंत्री भी हैं और पेट्रोलियम तेल ख़रीदने वाला भी उपभोक्ता ही है जिसकी परेशानी कम होने का नाम ही नहीं ले रही है?
ये हमलोगों के लिए भी चिंता की बात है. इसमें दो मत नहीं है, इस पर सरकार को काबू करना चाहिए.
पेट्रोलियम तेल की क़ीमतें सरकार ने बाज़ार पर छोड़ रखी हैं लेकिन फिर भी मेरा मानना है कि क़ीमत पर अंकुश लगना चाहिए.
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- तो अब दलितों से उनकी ये पहचान भी छीनी जाएगी?
- मोदी सरकार को 'दलित' शब्दावली से क्यों दिक़्क़त है?
- भारत में किस हाल में जी रहा है दलित समाज?
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